Latest ARTICLES : यूपी का चुनावी दंगल : चुनौतियाँ और संभावनाएं
उत्तर प्रदेश में चुनावी दंगल ,राहुल -अखिलेश का युवा नेतृत्व ,चुनौतियाँ और संभावनाएं     :  
 उत्तर
 प्रदेश की चुनावी राजनीति का पारा दिन प्रति दिन  तेज़ी से बढ़ता ही जा 
रहा है | विधान सभा के आम चुनावो में हर हाल में चुनाव जीतने  की ललक में 
राजनीतिक दलों ने तमाम स्वार्थी ,दल बदलुओं ,सिद्धांत हीन व आपराधिक 
प्रवृति के लोगो को बगलगीर करने में  ,गले लगाने में तनिक भी परहेज़ नहीं 
किया है | निश्चित रूप से  प्रत्येक चुनाव  प्रत्याशी व राजनीतिक दलों के 
लिए जीत हासिल करने के दृष्टिकोण से महत्व पूर्ण होता है |
उत्तर प्रदेश का यह विधान सभा २०१२ का आम 
चुनाव तो राजनीतिक दलों के नेतृत्व की छमता  के आकलन व युवा नेतृत्व की 
स्वीकारिता ,आम जन मानस में उनकी छवि के आकलन व असर के मद्देनज़र भी 
राजनीतिक विचारको-समीक्षकों के लिए रुचिकर व महत्व-पूर्ण हो गया है | उत्तर
 प्रदेश ही नहीं वरन  भारत – भूमि  की स्याह -संकीर्ण हो चुकी राजनीति में 
आम जनमानस भी तमाम मोह्पाशों  में जकड़ा किंकर्तव्य विमूढ़  अवस्था में 
पहुँच चुका है | सामाजिक-राजनीतिक-विकास परक स्थानीय मुद्दों पर राजनीतिक 
दलों के उदासीन व मनमाने रवैये  के कारण ही जाति-धर्म  आधारित राजनीति ने 
अपनी हनक जनता के बीच  जन प्रतिनिधि निर्वाचन  में  इस बार भी बदस्तूर जारी
 रखी है | भ्रष्ट व स्याह हो चुकी  अवसरवादी-सिद्धांत हीन राजनीति  के 
गलियारे में एक उम्मीद की करण राजनतिक दलों में युवा नेतृत्व ने जगा रखी है
  | लेकिन कश्मीर से कन्या-कुमारी तक राजनितिक दलों के आकाओं  के 
पुत्र-पुत्री  के युवा नेतृत्व के रूप में उभार को क्या सही मायनो में  
लोकतंत्र  में युवा नेतृत्व माना  जाना  चाहिए  ,यह एक यक्ष  प्रश्न है | 
इस प्रश्न का जवाब इन्ही युवा नेताओ को अपने कर्मो व कार्य छमता से स्वयं  
को साबित करने के लिए स्वयं ही देना होगा |
उत्तर प्रदेश की विधान सभा २०१२ की चुनावी 
रणभूमि में समूचे उत्तर प्रदेश में दो युवा चेहरे क्रमशः अखिलेश यादव 
-प्रदेश अध्यक्ष ,समाजवादी पार्टी और राहुल गाँधी – राष्ट्रीय महासचिव 
,कांग्रेस  अपने अपने राजनीतिक  दलों  की चुनावी जीत  सुनिश्चित  करने  के 
 लिए  अपनी  पूरी  ताकत लगाये हुये है | दोनों युवा नेताओ की सभाओ में जनता
 जम कर जमा हो रही है | अपने तेवरों व बयानों  के कारण दोनों लगातार चर्चा 
में  बने रहते है | जनता की भीड़  चर्चित चेहरों को देखने – सुनने में  
बहुत  दिलचस्पी रखती  है  फिर चुनावो के समय प्रत्याशी जनता को आने जाने का
 सुविधा साधन भी उपलब्ध करते ही है ,सो जनता खूब  जुटती  है | जन सभाओ में 
जुटाए जाने वाले मजमे से मतदाताओ का रुझान व राजनीतिक लोकप्रियता का आकलन 
अक्सर गलत ही साबित होता है | कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी के द्वारा 
बिहार प्रदेश के संपन्न हुये विधान सभा में की गयी मेहनत व उनकी जन सभाओ 
में उमड़ती भीड़ के बाद आये चुनाव नतीजो तथा सपा प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश 
यादव की पत्नी डिम्पल यादव की लोकसभा चुनाव में शिकस्त को कौन भुला सकता है
 ?
राजनीति के व्यवसायी-करण  की ही देन है कि 
आज राहुल गाँधी और अखिलेश यादव के व्यक्तित्व को विभिन्न प्रचार  माध्यम  
से निखारने , तराशने  व उभरने का काम एक सुनियोजित -चरण बद्ध  योजना के तहत
 कांग्रेस-समाजवादी पार्टी कर रही है | अब इसे चाहे कोई सत्ता की वंशानुगत 
 राजनीति कहे या संघर्ष की वंशानुगत राजनीति ,है तो ये वंशानुगत राजनीति ही
 ,इसे कोई नहीं नकार सकता है | राजनीतिक दलों के आकाओं  ने  अपने 
पुत्र,पुत्रिओं ,परिजनों  को कमान सौंप कर अपने संगठन में मुख्य केंद्रीय  
निर्णायक भूमिका देकर संगठन में उनके दबदबे व महत्व को स्थापित करने का काम
 किया है | कांग्रेस व सपा दोनों के नेता ,चाहे वो वरिष्ठ नेता ही या युवा 
,सभी  अपने अपने दल  के राजनीतिक आका के पुत्र-परिजन का यश -गुणगान करते ही
 है |
कांग्रेस की  पूरी मशीनिरी व प्रत्याशी 
राहुल गाँधी के कार्यक्रमों – दौरों को सफल बनाने में जुटी हुई है और 
समाजवादी पार्टी के सभी  प्रत्याशी-नेतागण  अखिलेश यादव को ,अखिलेश यादव के
 क्रांति रथ को  अपने विधान सभा में पा कर  स्वागत कर के अपने को धन्य  
मानते है | राहुल गाँधी और अखिलेश यादव  दोनों के ही इर्द गिर्द राजनीति का
 ताना-बना बुनने की कोशिश कांग्रेस-सपा का शीर्ष नेतृत्व चाह रहा है | 
राहुल गाँधी के सम्मुख कांग्रेस के भीतर कोई भी चुनौती नहीं है ,बहन 
प्रियंका भी साथ देने वक़्त आने पर मुस्तैदी से आ ही जाती है वही दूसरी तरफ
 सपा के अन्दर समाजवादियो के आशाओं  के केंद्र बिंदु बनकर उभरे  अखिलेश 
यादव  के सम्मुख पारिवारिक चुनौती  भी मौजूद है | चाचा शिवपाल यादव -नेता 
प्रतिपक्ष के अलावा अब प्रतीक यादव की राजनीतिक  हसरते हिलोरे मारती दिख 
रही है | राहुल गाँधी को जहा सिर्फ दुसरे दलों पर प्रहार करके कांग्रेस की 
रहे बनाते हुये अपनी उपयोगिता साबित  करनी है  वही अखिलेश यादव सपा के भीतर
 भी वर्चस्व  की लडाई लड़ने  को विवश है | स्वयं निर्भीक निर्णय लेने की 
छमता में अखिलेश यादव ने राहुल गाँधी को शिकस्त देकर अपनी वैचारिक  दृठता व
 संगठन पर पकड़ मजबूत होने का आभास करा दिया है  |
अंत में सत्य यह है आम जनता दोनों को सिर्फ
 देखने सुनने के लिए ही जुट रही है | इनके विचारो-बयानों का भरपूर  
रसास्वादन व समीक्षा आम जनता कर रही है | प्रत्याशी  व स्थानीय -जातीय आधार
 को प्रमुखता से ध्यान में रखकर इस बार मतदाता  मतदान करेगा ,यह आसार  साफ़
 तौर पर प्रतीत हो रहा है | परंपरागत मतदाताओ को अपने पक्ष में  करने में 
अखिलेश यादव कामयाब दिख रहे है वही राहुल गाँधी को कई जगह विरोध प्रदर्शनों
 का सामना करना पड़ रहा है | उत्तर प्रदेश के विधान सभा के २०१२ के आम 
चुनाव इन दोनों युवा नेताओ के व्यक्तिगत राजनीतिक आभा-मण्डल को  प्रभावित  
करेंगे | उत्तर प्रदेश  में अखिलेश यादव के सम्मुख जहाँ  चुनौती  अधिक है 
वही  उनसे उम्मीद भी बहुत है | अपनी युवा बिग्रेड के सहारे अखिलेश यादव 
पार्टी के अन्दर बाहर की हर जंग लड़ने व जीतने के लिए कमर कसे दीखते हैं , 
वही राहुल गाँधी को सिर्फ  पार्टी के लिए ,प्रत्याशियो के लिए सिर्फ प्रचार
 करना और भाषण करना है |