देवास-एंट्रिक्स सौदे से खुली वैज्ञानिकों की रार
नई दिल्ली : 
देवास-एंट्रिक्स सौदे की पड़ताल ने देश के शीर्ष वैज्ञानिकों की भी 
राजनीतिक खींचतान को बेपर्दा कर दिया है। इस विवादास्पद करार में भूमिका को
 लेकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व प्रमुख जी. माधवन 
नायर और तीन अन्य अंतरिक्ष वैज्ञानिकों पर भविष्य में कोई सरकारी पदभार 
ग्रहण पर रोक के बाद झगड़ा खुल कर सामने आ गया है। नायर ने सरकार के कदम को
 कायरतापूर्ण और अनुचित कार्य बताते हुए कहा है कि इसरो गलत लोगों के हाथों
 में चला गया है। इसके लिए संगठन के मौजूदा प्रमुख के.राधाकृष्णन सीधे 
जिम्मेदार हैं जो अयोग्यता और निजी एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। उन्होंने
 पूरे मुद्दे (करार) पर सरकार को गुमराह किया और गलत सूचना देकर कार्रवाई 
की। वह कई लोगों को निशाना बनाने पर तुले हुए हैं और इस प्रक्रिया में 
संगठन का सत्यानाश कर रहे हैं। वहीं सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि सौदे की
 जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री के विचाराधीन है। 
अंतरिक्ष विभाग ने एंट्रिक्स कॉर्प और देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड 
के बीच हुए समझौते में नियमों की अनदेखी और घोटाले की जानकारी के बाद 13 
जनवरी का आदेश जारी किया था। इसमें माधवन नायर, इसरो में पूर्व वैज्ञानिक 
सचिव के.भास्करनारायण, इसरो की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स के पूर्व प्रबंध 
निदेशक केआर श्रीधर मूर्ति, और इसरो उपग्रह केंद्र के पूर्व निदेशक केएन 
शंकरा पर कोई भी सरकारी पद संभालने से प्रतिबंधित कर दिया है। 
अंतरिक्ष मामलों के प्रभारी और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री एन.
 नारायण सामी ने बुधवार को कहा कि देवास-एंट्रिक्स सौदे की जांच के  लिए 
बनी समिति ने अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी हैं। समिति ने सलाह दी है कि 
माधवन नायर समेत कुछ लोगों को सरकार में किसी संवेदनशील पद पर नियुक्त न 
किया जाए। सामी ने बताया कि मामला प्रधानमंत्री के विचाराधीन है और सरकार 
को अभी इस बारे में अंतिम फैसला लेना है। उन्होंने इस बात का भी हवाला दिया
 कि देवास-एंट्रिक्स सौदे से जुड़ा मामला अदालत में भी लंबित है। इसरो 
प्रमुख और अंतरिक्ष विभाग के सचिव के राधाकृष्णन का बचाव करते हुए सामी ने 
कहा, समिति की सिफारिशों में उनका कोई हाथ नहीं है। साथ ही उन्होंने इस बात
 पर जोर दिया कि अगर किसी वैज्ञानिक के खिलाफ कोई आरोप लगते हैं तो उनकी 
जांच करना सरकार की जिम्मेदारी है। 
राधाकृष्णन के खिलाफ खुलकर मैदान में आए नायर ने सरकार पर भी खूब तीर चलाए।
 अपने कार्यकाल में हुए देवास-एंट्रिक्स सौदे को बेदाग बताते हुए नायर ने 
कहा, सरकार का भी रवैया न्यायपूर्ण नहीं है और लोगों की प्रतिष्ठा को इस 
तरह ठेस पहुंचाना मानवाधिकार का भी हनन है। भारत के चंद्रयान-1 अभियान में 
अहम भूमिका निभाने ाले नायर ने कहा, जिस व्यक्ति ने मुंबई में आतंकी हमले 
को अंजाम दिया,उसे तीन- चार स्तर पर अपील की आजादी थी। क्या हम आतंकियों से
 भी बुरे हैं? किसी तानाशाही /सैन्य शासन में भी काली सूची में डाले जाने 
वाले व्यक्ति को एक  मौका दिया गया होगा, लेकिन मुझे कोई मौका नहीं दिया 
गया। 
इस मामले की किसी तरह की जांच नहीं की गई, किसी को आरोप पत्र नहीं जारी 
किया गया, फिर सरकार दंडात्मक कार्रवाई कैसे कर सकती है? मैं इस आदेश पर 
क्षुब्ध हूं, जो मुझे अभी भेजा नहीं गया है। मैंने अभी आदेश देखा नहीं है। 
आदेश प्राप्ति के बाद उचित कार्रवाई के बारे में निर्णय लेंगे। 1998 में 
पद्मभूषण और 2009 पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित नायर ने कहा,  यह उनकी 
छवि धूमिल करने की एक कोशिश है। वह मौजूदा सरकार के अधीन किसी भी संगठन में
 काम करने को उत्सुक नहीं हैं। नायर ने आरोप लगाया कि राधाकृष्णन इसरो की 
उम्मीदों पर खरा उतरने में अक्षम साबित हुए हैं और इससे ध्यान बंटाने के 
लिए ही दूसरे वैज्ञानिकों को काली सूची में डालने जैसी कार्रवाई कर रहे 
हैं। नायर ने कहा, वह ट्रांसपोंडर और उपग्रह में फर्क भी नहीं जानते। पिछले
 दो वर्षो के दौरान इसरो ने कोई बड़ी परियोजना घोषित नहीं की है और यह 
संगठन जल्द ही थम जाएगा। जब से राधाकृष्णन ने इसरो की जिम्मेदारी संभाली 
है, संगठन का कुल बजटीय खर्च कुल प्रावधान के 50 प्रतिशत पर आ गया है, जबकि
 मेरे कार्यकाल के दौरान इसरो ने बजटीय प्रावधान का लगभग पूरा उपयोग किया 
था। इसरो अब गलत लोगों के हाथों में चला गया है। नायर के आरोपों पर 
प्रतिक्रिया के लिए राधाकृष्णन उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।
उल्लेखनीय है कि अंतरिक्ष विभाग के मातहत एंट्रिक्स कार्पोरेशन और पूर्व 
इसरो अधिकारियों की निजी कंपनी देवास के बीच हुए एस बैंड सौदे में घोटाले 
के आरोप के बाद सरकार उसे निरस्त कर चुकी है।




