
मुफ्ट लैपटॉप और बेरोजगारी भत्ते के वादे ने सपा को दिलाई जीत
संजय सिंह/एसएनबी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को हैरतअंगेज तरीके से मिली आशातीत सफलता के रहस्य को लेकर अभी भी राज्य के अलग-अलग वर्ग में विचार-विमर्श का दौर जारी है.
मतदान के सभी चरणों में हुए भारी मतदान के निहितार्थ मतगणना के पहले तक
निकाले जा रहे थे, लेकिन रिजल्ट आने के बाद और चुनाव के दौरान से ही प्रदेश
के जिला रोजगार दफ्तरों पर रजिस्ट्रेशन के लिए बेरोजगार युवकों की उमड़ने
वाली भारी भीड़ ने अब सब कुछ साफ कर दिया है. दरअसल यह वही भीड़ है जो
बेरोजगारी भत्ता और लैपटाप के लालच में पहले मतदान केंद्रों पर फिर रोजगार
दफ्तरों पर उमड़ पड़ी है.
कहना न होगा कि इस चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी के कथित भ्रष्टाचारी मंत्रियों से उपजा जनता का गुस्सा और समाजवादी पार्टी की लोकलुभावन घोषणाओं ने सपा का मार्ग प्रशस्त तो किया ही, बेरोजगार नवयुवकों के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह द्वारा बेरोजगारी भत्ता और लैपटाप देने की घोषणा ने एक बहुत बड़ी मतदाता संख्या को अपनी तरफ खींचने के लिए चुंबक का काम किया.
बढ़ा मतदान प्रतिशत साफ-साफ चुगली कर रहा था कि स्थिति सत्ता विरोधी तो है, लेकिन दूसरे दलों के नेता इस बढ़ोतरी को अपने-अपने पक्ष में मान रहे थे. कांग्रेस के मंत्री और रणनीतिकार यही मानकर खुश थे कि चुनाव में नवयुवकों की उमड़ी भीड़ ‘राहुल फैक्टर’ का नतीजा है. युवक राहुल से प्रेरित होकर मतदान केंद्रों पर पहुंच रहे हैं.
भाजपा मान रही थी कि स्वर्ण मतदाता उसकी तरफ पोलराइज हो गया है, लेकिन कोई भी इस भीड़ का असल निहितार्थ नहीं समझ पा रहा था, युवाओं की भीड़ का-बेरोगजारी से त्रस्त उस भीड़ का, जिसके लिए नौकरियों के अकाल में मात्र एक हजार रुपए बेरोगारी भत्ता और इंटरनेट संचार युग में लैपटाप का मुफ्त मिल जाना किसी ख्वाब से कम नहीं.
मतदान केंद्रों पर उमड़ पड़ी युवाओं की यह वह भीड़ थी, जिसे मुलायम सिंह की घोषणा एक फौरी राहत के रूप में समझ आई. उसे यह बात भी पता थी कि कोई भी सरकार आए जाए नौकरियां तो मिलने से रहीं, तो क्यों न जिसके तत्काल मिलने की उम्मीद है, जो घेषणाओं में है और जो आरक्षण की बला से मुक्त है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जाए. यह प्रयास ही सपा प्रत्याशियों को ठप्पे के रूप में सामने आया और जब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का जिन्न खुला तो खुद समाजवादी पार्टी के लिए भी उसकी कल्पना और सोच से बाहर का नतीजा सामने आया.
बेरोजगार नवयुवकों को लुभावनकारी घोषणाओं के अलावा किसानों की कुछ हद तक कर्ज माफी की घोषणाओं ने भी सपा की तरफ उन वोटों को भी खींचा जो उसके परंपरागत वोट नहीं हैं. एक ऐसी ही उनकी घोषणा प्रदेश में चलने वाले रिक्शों में मोटर लगाने की थी जिसे मजदूर तबके ने पसंद किया.
यह अलग बात है कि इन घोषणाओं का अनुपालन नई सरकार किस तरह करेगी, यह तो बाद में पता चलेगा. सभी जाति-वर्ग के नवयुवकों की भारी फौज का सपा के पक्ष में हुआ ध्रुवीकरण सभी दलों के मतदाताओं पर भारी तो पड़ा, लेकिन सपा सरकार के लिए उसकी घोषणाएं असल परीक्षा होंगी जिस पर सबकी निगाहें सरकार गठन के पहले से ही लग गई हैं.
कहना न होगा कि इस चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी के कथित भ्रष्टाचारी मंत्रियों से उपजा जनता का गुस्सा और समाजवादी पार्टी की लोकलुभावन घोषणाओं ने सपा का मार्ग प्रशस्त तो किया ही, बेरोजगार नवयुवकों के लिए सपा मुखिया मुलायम सिंह द्वारा बेरोजगारी भत्ता और लैपटाप देने की घोषणा ने एक बहुत बड़ी मतदाता संख्या को अपनी तरफ खींचने के लिए चुंबक का काम किया.
बढ़ा मतदान प्रतिशत साफ-साफ चुगली कर रहा था कि स्थिति सत्ता विरोधी तो है, लेकिन दूसरे दलों के नेता इस बढ़ोतरी को अपने-अपने पक्ष में मान रहे थे. कांग्रेस के मंत्री और रणनीतिकार यही मानकर खुश थे कि चुनाव में नवयुवकों की उमड़ी भीड़ ‘राहुल फैक्टर’ का नतीजा है. युवक राहुल से प्रेरित होकर मतदान केंद्रों पर पहुंच रहे हैं.
भाजपा मान रही थी कि स्वर्ण मतदाता उसकी तरफ पोलराइज हो गया है, लेकिन कोई भी इस भीड़ का असल निहितार्थ नहीं समझ पा रहा था, युवाओं की भीड़ का-बेरोगजारी से त्रस्त उस भीड़ का, जिसके लिए नौकरियों के अकाल में मात्र एक हजार रुपए बेरोगारी भत्ता और इंटरनेट संचार युग में लैपटाप का मुफ्त मिल जाना किसी ख्वाब से कम नहीं.
मतदान केंद्रों पर उमड़ पड़ी युवाओं की यह वह भीड़ थी, जिसे मुलायम सिंह की घोषणा एक फौरी राहत के रूप में समझ आई. उसे यह बात भी पता थी कि कोई भी सरकार आए जाए नौकरियां तो मिलने से रहीं, तो क्यों न जिसके तत्काल मिलने की उम्मीद है, जो घेषणाओं में है और जो आरक्षण की बला से मुक्त है, उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जाए. यह प्रयास ही सपा प्रत्याशियों को ठप्पे के रूप में सामने आया और जब इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का जिन्न खुला तो खुद समाजवादी पार्टी के लिए भी उसकी कल्पना और सोच से बाहर का नतीजा सामने आया.
बेरोजगार नवयुवकों को लुभावनकारी घोषणाओं के अलावा किसानों की कुछ हद तक कर्ज माफी की घोषणाओं ने भी सपा की तरफ उन वोटों को भी खींचा जो उसके परंपरागत वोट नहीं हैं. एक ऐसी ही उनकी घोषणा प्रदेश में चलने वाले रिक्शों में मोटर लगाने की थी जिसे मजदूर तबके ने पसंद किया.
यह अलग बात है कि इन घोषणाओं का अनुपालन नई सरकार किस तरह करेगी, यह तो बाद में पता चलेगा. सभी जाति-वर्ग के नवयुवकों की भारी फौज का सपा के पक्ष में हुआ ध्रुवीकरण सभी दलों के मतदाताओं पर भारी तो पड़ा, लेकिन सपा सरकार के लिए उसकी घोषणाएं असल परीक्षा होंगी जिस पर सबकी निगाहें सरकार गठन के पहले से ही लग गई हैं.
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