23 March 2012

Latest ARTICLE : सांडर्स की हत्या के लिए मिली थी फांसी


शहीद-ए-आजम भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी हुई यह बात हर हिंदुस्तानी जानता है, पर किस मुकदमें में फांसी हुई इसका जवाब बमुश्किल ही मिलता है। इसका कारण यह है कि सजा से पहले भगत सिंह और उनके साथियों पर दो मुकदमे चले। पहला था एसेंबली बम कांड का और दूसरा लाहौर षड़यंत्र कांड यानी सांडर्स की हत्या का। इनमें से सांडर्स की हत्या के लिए भगत सिंह और फांसी की सजा सुनाई गई और एसेंबली बम कांड के लिए आजीवन कारावास। सांडर्स की हत्या के लिए ही राजगुरु और सुखदेव को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी।
इस केस की फाइल राजधानी लखनऊ में पुराना किला के पास स्थित शहीद शोध केंद्र में रखी है। सांडर्स हत्याकांड की सुनवाई की केस फाइल में दिनवार हर दिन का घटनाक्रम दर्ज है। जे. कोल्डस्ट्रीम के हस्ताक्षर के साथ हर दिन की प्रोसीडिंग की व्याख्या मौजूद है। यह केस पांच माई 1930 से पुंछ हाउस, लाहौर स्थित विशेष अदालत में चल रहा था। पहले ही दिन से सांडर्स की हत्या में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के साथी रहे जय गोपाल की गवाही का जिक्र है। जय गोपाल बताते हैं कि-दस दिसंबर 1928 को मीटिंग में मुझे काम दिया गया कि मैं सांडर्स के ऑफिस आने-जाने के समय पर नजर रखूं और बताऊं। 11, 12, 13 व 14 दिसंबर को नजर रखने के बाद यह तय हुआ कि 15 तारीख को सांडर्स की हत्या की जाएगी। 
मैंने बताया कि गाड़ी संख्या 6728 से वह सुबह 10 से 11 के बीच ऑफिस आता है और शाम को चार से पांच के बीच चला जाता है। 15 (शनिवार) को वह नहीं आया और फिर 17 को हत्या का प्लान बना। उस दिन वह अपनी कार से नहीं, मोटर साइकिल से आया था..। जय गोपाल की गवाही कई दिनों तक जारी रही और हर शब्द भगत सिंह व उसके साथियों के लिए मौत का फरमान बन रहा था। इसमें योजना समेत घटनाक्रम की विस्तृत व्याख्या है, जिसमें जिक्र है कि भगत सिंह ने सांडर्स पर पांच या छह गोली चलाई। मुकदमा के दौरान स्पेशल कोर्ट में 18 लोग थे, इनमें से भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को फांसी और जयदेव कपूर, शिव वर्मा, गया प्रसाद, बटुकेश्र्वर दत्त, महाबीर सिंह, विजय कुमार सिन्हा, किशोरी लाल व कमलनाथ तिवारी को आजीवन कारावास की सजा मिली। अन्य में कुछ को पांच और कुछ को दस साल की सजा सुनाई गई। मुकदमें की प्रोसीडिंग फाइल के अनुसार भगत सिंह 11वें अभियुक्त थे और सुखदेव पहले। इस मुकदमें में एक अभियुक्त को एम कहकर संबोधित किया गया है, जिसकी अभियुक्त संख्या 16 थी। अंत तक यह पता नहीं चलता कि वह कौन था? राजधानी आते थे भगत भगत सिंह का राजधानी से भी जुड़ाव रहा है। 
1925 में हुए काकोरी लूट कांड के आरोपियों पर जब मुकदमा चल रहा था, तब कार्यवाही का हाल लेने के लिए वह राजधानी आते और क्रांतिकारियों के वकील सीबी गुप्त से मिलते थे। कांग्रेसी के वेश में वह बदले नाम के साथ मिलते थे। लाहौर षड़यंत्र कांड के बाद उन्होंने वास्तविक नाम के साथ सीबी गुप्त को चिट्ठी लिखी और मिलने की बात कही। जब सीबी गुप्त भगत सिंह से मिलने पहुंचे तो वह उन्हें देखकर अवाक रह गए। इसका जिक्र सीबी गुप्त ने अपने संस्मरण में किया है। विचारों ने बनाया बड़ा : भगत सिंह के विचारों ने उन्हें औरों से बड़ा बनाया। वह अंग्रेजों को इस देश से बाहर कर देना चाहते थे क्योंकि यह सभी भारतीयों में समानता के लिए आवश्यक था। भगत सिंह के शब्दों में-सत्ता सिर्फ गोरे हाथों से काले हाथों में आ जाए, आजादी इसी का नाम नहीं है..। 
डिस्कवरी ऑफ इंडिया में पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है-लोगों में भगत के विचार लोकप्रिय हो रहे थे। 1930 के आसपास उसकी प्रसिद्धि बापू के समकक्ष या उससे ज्यादा हो चुकी थी..। फांसी के फंदे को विचारों का मंच मानने वाले भगत सिंह ने ही कहा था-ब्रिटिश हुकूमत के लिए मरा हुआ भगतसिंह, जिंदा भगतसिंह से ज्यादा खतरनाक होगा..।

1 comment:

Anonymous said...

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