चयन के बाद 40% ने छोड़ दी बैंक की नौकरी
रास नहीं आया कम वेतन, गांव में ड्यूटी
ये हो सकते हैं समाधान
: चयनित अभ्यर्थियों को होम टाउन या आसपास के जिले में पोस्टिंग मिले।
: ट्रेंनिग से पहले बॉन्ड भरवाकर सुनिश्चित किया जाए कि दो साल से पहले नौकरी छोड़ी तो बॉन्ड में भरी गई राशि अदा करनी पड़ेगी।
: वेतनमान में सुधार हो।
: इंटरव्यू के दौरान ऐसे सामान्य स्नातक व्यक्तिको प्राथमिकता मिले, जो जरूरतमंद है।
: बीटेक, एमबीए व पीजी स्तर की डिग्री की वेटेज सीमा कम हो।
(ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाइज एसो. के वाइस प्रेसिडेंट महेश मिश्रा व नेशनल
ऑर्गेनाइजेशन ऑफ बैंक आफीसर्स के ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी एसके राठौड़,
आईबीपीएस बैंक भर्ती के नोडल ऑफिसर आदित्य कुलश्रेष्ठ से बातचीत के आधार
पर)
पब्लिक सेक्टर के बैंकों में पिछले दो साल में हुई क्लर्क की बहाली का हाल, कई ट्रेनिंग लेकर गए निजी बैंकों में
केस 1 : नौकरी नहीं छोड़ता तो क्या करता
जयपुर के अमित शर्मा ने बताया कि उसे बांसवाड़ा में पोस्टिंग दी गई और
बांसवाड़ा के स्थानीय व्यक्ति को जयपुर ग्रामीण इलाके में। दोनों ने ही
नौकरी छोड़ दी। अमित ने बताया कि इतने कम वेतन में बांसवाड़ा में नौकरी
करना संभव नहीं था।
केस २ : लड़की के लिए धौलपुर नौकरी करना मुश्किल बीटेक युवती सपना (परिवर्तित नाम) ने बताया कि पिछले वर्ष पीएनबी में सलेक्शन हुआ। ट्रेनिंग के अंतिम दिन मुझे धौलपुर में पोस्टिंग मिली, पर मैंने जॉइन ही नहीं किया। आप ही बताएं, किसी अकेली लड़की को डकैतों वाले इलाके में क्या सोचकर पोस्टिंग दी गई थी ?
स्टेट बैंकों की शाखाएं एक या दो क्लर्क के भरोसे
एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन के प्रतिनिधि राजेश नागपाल का कहना है कि शहरों के निकट कस्बों में स्टेट बैंकों की अधिकांश बैंकों का हाल ये है कि एक या ज्यादा से ज्यादा दो क्लर्क ही लेनदेन संभाल रहा है। किसी एक व्यक्ति के अवकाश पर रहने से कई बार तो बैंक में लेनदेन तक नहीं होते है। अधिकांश बैंकों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं होने से बैंकों में तैनात एक-दो जने के स्टाफ को परेशानी हो रही है।
ऐसा क्यों हुआ
: अभ्यर्थियों को होम टाउन या होम टाउन के पड़ोसी जिले में भी पोस्टिंग नहीं दी गई। दूरदराज पोस्टिंग मंजूर नहीं थी।
: बैंक क्लर्क का वेतनमान बहुत कम, दूसरी जगह नौकरी करके सरवाइव करना आसान नहीं है।
: निजी बैंक लुभावने पैकेज देते हैं, खासकर उन्हें जो ट्रेनिंग पा चुका है।
पब्लिक सेक्टर बैंकों की प्रतियोगी परीक्षा व इंटरव्यू पास करके क्लर्क बने 40 से 50 फीसदी युवाओं ने नौकरी छोड़ दी। इनमें से 90 फीसदी तक बीटेक व एमबीए डिग्रीधारी हैं। उनको कम वेतन व दूर की जगह में पोस्टिंग रास नहीं आई। इधर इतने ही पद फिर से खाली होने से बैंकों को अच्छा-खासा नुकसान हुआ है। उनकी नई ब्रांचें खोलने की प्लानिंग, स्टाफ की तैनाती व बैंकिंग सेवा विस्तार आदि कार्यों पर असर पड़ा है। अब उनको भर्ती के लिए नए सिरे से कवायद करनी पड़ रही है।
14 दिन की ट्रेनिंग लेने के बाद छोड़ा
अधिकतर युवाओं ने दो हफ्ते की बैंकिंग ट्रेनिंग लेने के बाद नौकरी छोड़ी। इससे बैंकों को ट्रेनिंग खर्च का भी नुकसान उठाना पड़ा। बैंक अफसरों के अनुसार 60 से 80 उम्मीदवारों के एक बैच की फैकल्टी की ट्रेनिंग पर सवा लाख रु. के करीब खर्च आता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक उम्मीदवार के रहने-खाने व पॉकेट अलाउंस पर 10 हजार रु. और क्लास में लिटरेचर, आउटिंग चार्ज, बैंक शाखाओं में पै्रक्टिकल शुल्क पर प्रति उम्मीदवार 2000 रु तक खर्च आता है।
निजी क्षेत्रों में भाग्य आजमाया
पब्लिक सेक्टर बैंकों में ट्रेनिंग से जुड़े वरिष्ठ बैंक प्रबंधक दिनेश कुमार ने बताया कि कई युवा बैं की नौकरी छोड़ निजी बैंकों में चले गए। इसके अलावा इंश्योरेंस और निवेश के सेक्टर की ओर रुख किया है। शेष इंफ्रास्ट्रक्चर के सेक्टर की ओर रुख कर रहे है। महज आठ से दस प्रतिशत अभ्यर्थियों का सरकारी नौकरी की ओर रुझान है।
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