इलाहाबाद : माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा 13 नवंबर को ली गई
शिक्षक पात्रता परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों के करोड़ों रुपये फंस गए हैं।
पांच जिलों में आवेदन शुल्क के रूप में लिए गए इन रुपयों में से
अभ्यर्थियों को चार जिलों के आवेदन शुल्क वापस किया जाना था, पर अभी तक
नहीं हो सका है। ये रुपये कब वापस मिलेंगे इसके बारे में कोई भी कुछ बोलने
को तैयार नहीं है।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत कक्षा एक से आठ तक में शिक्षकों की
नियुक्ति के लिए प्रदेश में पहली बार टीईटी का आयोजन किया गया। काफी विचार
मंथन के बाद इस परीक्षा को कराने का जिम्मा यूपी बोर्ड को दिया गया। 13
नवंबर 2011 को आयोजित इस परीक्षा का परिणाम 25 नवंबर को घोषित कर दिया गया।
परीक्षा परिणाम के बाद तत्कालीन बसपा सरकार ने पहले पांच जिलों से आवेदन
करने की छूट दी थी।
सरकार के इस फैसले के खिलाफ अभ्यर्थी हाईकोर्ट चले गए।
हाईकोर्ट ने बाद में पांच जिलों से आवेदन करने का फैसला निरस्त कर दिया और
कितने की जिलों से आवेदन करने की छूट दे दी। शासन ने पांच जिलों में
पांच-पांच सौ रुपये आवेदन शुल्क के रूप में वसूले थे। बाद में सरकार ने यह
फैसला लिया कि एक ही जनपद में लगाई गई आवेदन शुल्क की डीडी की फोटो कॉपी
बाकी अन्य जिलों में लगाकर आवेदन किया जा सकेगा। सभी जिलों में आवेदन शुल्क
के रूप में पांच सौ रुपये की डीडी नहीं लगानी पड़ेगी। तत्कालीन बसपा सरकार
ने यह भी कहा कि अभ्यर्थियों द्वारा चार अन्य जिलों में आवेदन शुल्क के
रूप में भेजे गए शुल्क को वापस दे दिया जाएगा। सामान्य के अभ्यर्थियों को
दो हजार व अन्य को एक हजार रुपये के हिसाब से पैसे वापस मिलने थे। विडंबना
यह है कि टीईटी में घोटाला उजागर होने और तत्कालीन निदेशक माध्यमिक संजय
मोहन के गिरफ्तार होने के बाद अभ्यर्थियों की शुल्क वापसी का मामला फंस गया
है। इस बारे में पूछने पर कोई जिम्मेदार अफसर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं
है। अभ्यर्थियों के शुल्क की वापसी कैसे होगी, क्या तरीका अपनाया जाएगा यह
रहस्य बना हुआ है। फिलहाल अभ्यर्थी करोड़ों के घोटाले में इसको भी एक
घोटाले की शक्ल में देख रहे हैं।
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