लखनऊ। केंद्र
सरकार ने भले ही शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत यूपी के बीएड
डिग्रीधारकों को प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक बनाने की अनुमति दे दी हो
लेकिन राज्य सरकार की लापरवाही से भर्ती प्रक्रिया लटक गई है। सरकार को चुनाव आयोग से अनुमति लेना अनिवार्य होगा और आयोग इतनी बड़ी संख्या में भर्ती की अनुमति देगा, यह संभव नहीं लगता। यही नहीं मोअल्लिम
डिग्रीधारकों का भविष्य भी अधर में फंस गया है। मोअल्लिम डिग्रीधारकों से
भर्ती के लिए आवेदन मांगा जाता, इससे पहले यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए
आचार संहिता लग गई। इससे साफ हो गया है कि शिक्षा का
अधिकारी अधिनियम के तहत प्राइमरी स्कूलों में होने वाली 72 हजार 825
शिक्षकों की भर्ती चुनाव बाद ही हो सकेगी।
राष्ट्रीय
अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने राज्यों को बीएड डिग्रीधारकों को सीधी
भर्ती की अनुमति 31 दिसंबर 2011 तक दी थी। एनसीटीई ने शिक्षकों की भर्ती के
लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य किया है। राज्य
सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्राइमरी स्कूलों में 80 हजार
शिक्षकों की भर्ती का प्रस्ताव भेजकर केंद्र से मंजूरी ली थी। केंद्र से
मंजूरी के बाद राज्य सरकार इस ऊहापोह में रही कि टीईटी न कराना पड़े।
टीईटी को लेकर शासन स्तर पर छिड़ी जंग इतनी खिंची की केंद्र से शिक्षकों की भर्ती की अनुमति मिलने के बाद भी मामला साल भर से अधिक टल गया।
अंतत: राज्य सरकार ने 13 नवंबर को टीईटी कराने का निर्णय किया। टीईटी के
बाद रिजल्ट जारी हुआ तो आवेदन को लेकर शासन स्तर पर मामला फंस गया।
शासन स्तर पर निर्णय करते-कराते काफी समय निकल गया। राज्य सरकार ने शिक्षकों की भर्ती के लिए भले ही 9 जनवरी तक आवेदन मांगा, लेकिन प्रदेश में चुनाव आचार संहिता 24 दिसंबर को लागू हो गई। विभागीय
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शिक्षक भर्ती के लिए जिलों में 5
जनवरी तक 49 लाख आवेदन प्राप्त हो चुके थे और अंतिम तिथि तक आवेदन आने का
आंकड़ा 70 लाख के ऊपर तक पहुंच सकता है। शिक्षक भर्ती के
लिए भले ही टीईटी पास अभ्यर्थियों ने आवेदन किया हो लेकिन उन्हें फिलहाल
चुनाव समाप्त होने का इंतजार करना पड़ेगा।
•मोअल्लिम डिग्री धारकों का भविष्य भी अधर में