इलाहाबाद : किसी जमाने में प्रतिष्ठा के शिखर पर रहे उप्र माध्यमिक शिक्षा
परिषद (यूपी बोर्ड) की फजीहत अब किसी से छिपी नहींहै। स्वायत्तता खत्म होने
के बाद विश्व की सबसे बड़ी परीक्षा संस्था माध्यमिक शिक्षा परिषद सरकार की
जेबीसंस्था के रूप में तब्दील हो गई है। स्थिति यह हो गई है कि परिषद के
सभापति व सचिव सारी शक्तियों का अनंतिम उपयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि
पिछले तीन दशकों में परीक्षा केंद्रों के निर्धारण, वित्तविहीन विद्यालयों
की मान्यता, मूल्यांकन केंद्रों व उसकी व्यवस्था आदेशों आदिमें बड़े पैमाने
पर भ्रष्टाचार जारी है।
1984 से पूर्व माध्यमिक शिक्षा परिषद एक लोकतांत्रिक व स्वायत्तशासी संस्था के रूप में कार्य कर रही थी। इसके 72 सदस्यीय बोर्ड में 32 निर्वाचित सदस्य, 31 नामित सदस्य व शेष पदेन सदस्यों की व्यवस्था थी। बोर्ड में शिक्षकों की सहभागिता और प्रतिनिधित्व के उद्देश्य से 12 प्रधानाचार्यो व 12 शिक्षक सदस्यों का प्रदेश के विभिन्नमंडलों से माध्यमिक शिक्षकों द्वारा निर्वाचित किए जाने का प्राविधान था।1984 की बोर्ड परीक्षा में बड़े स्तरपर भ्रष्टाचार व व्यवधान के कारण 1985 में उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पीएन हरकौली की एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया। जांच आयोग ने केंद्र निर्धारण, प्रकाशनों के मुद्रण, मूल्यांकन, जानबूझकर बड़ी संख्या में परीक्षाफल अपूर्ण रखने आदि से संबंधित भ्रष्टाचार को उजागर किया था। आयोग ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए। आयोग ने जांच रिपोर्ट में कहा था कि बोर्ड के महत्वपूर्ण कार्यो को केवल सचिव-निदेशक पर न छोड़ा जाए। इसमें शिक्षाविदों का परामर्श लेने का सुझाव दिया गया था। समिति ने उस समय के सदस्यों के आचरण को भी स्वार्थ हितों में संलिप्त व दोषपूर्ण पाया था। इसी की आड़ में तत्कालीन सरकारों ने 1984 से 2007 तक बोर्ड के सदस्यों के चुनाव नहीं कराए गए। बोर्ड की सारी शक्तियों का प्रयोग सचिव व निदेशक करते रहे। 2007 में तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने विधानपरिषद में इंटरमीडिएट शिक्षा संशोधन विधेयक लाया, जिसे 12 मार्च 2007 कोपारित कर दिया गया। इस विधेयक में परिषद में प्रधानाचार्यो व अध्यापकों के प्रतिनिधित्व को समाप्त कर दिया गया। परिषद को 25 सदस्यों वाली नामित संस्था बना दिया गया। हालांकि इस विधेयक को राज्यपाल ने अनुमति नहीं मिली। बाद में बसपा सरकार के आने के बाद उसी संशोधित विधेयक पर राज्यपाल की मुहर लगवा ली।इसी के बाद माध्यमिक शिक्षा परिषद सरकार की जेबी संस्था हो गई और भ्रष्टाचार धीरे-धीरे परिषद की प्रतिष्ठा को खोखला करने लगा। माध्यमिक शिक्षक संघ (ठकुराई गुट) के जिलाध्यक्ष लालमणि द्विवेदी का कहते हैं कि विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें माध्यमिक शिक्षा में राजनीतिक एजेंडे को लागू करती रहीं और अपना हित साधती रहीं। किसी सरकार में बोर्ड परीक्षा परिणाम 14 प्रतिशत तो किसी में 84 प्रतिशत रहता है। यही कारण रहा कि माध्यमिक शिक्षा का स्तर दिनों-दिन गिरता जा रहा है।
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