उत्तर प्रदेश में शिक्षक पात्रता परीक्षा यानी
टीईटी में अभ्यर्थियों से चयन के नामपर वसूली के मामले में माध्यमिक शिक्षा
परिषद के निदेशक संजय मोहन कीगिरफ्तारी से इस परीक्षा में धांधली की
पुष्टि होती है। यह संभवत: पहली बार है जब किसी परीक्षा में धांधली के
मामले में संबंधित संस्था के शीर्ष अधिकारी को गिरफ्तार किया गया हो। उनकी
गिरफ्तारी माध्यमिक शिक्षापरिषद में घर कर गए भ्रष्टाचार की गंभीरता को
उजागर करती है। इस मामले में जिस तरह यह सामने आया कि उन्होंने अपने कुछ
साथियों को मिलाकर करीब आठ सौ
अभ्यर्थियों को अनुचित तरीके से पास कराने का
ठेका लिया था उससे यह संदेह होना स्वाभाविक है कि उन्होंने पूरी परीक्षा
की विश्वसनीयता को ही दांव पर लगा दिया था। इससे तो यही लगता है कि अब
सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भीअपराधी तत्वों की भांति गिरोह बनाने में
सक्षम हो गए हैं। यह परीक्षा दोबारा आयोजित हो अथवा न हो, लेकिन उसकी
विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न तोलग ही चुका है। इस परीक्षा की साख पर इसलिए
और अधिक आघात लगा है, क्योंकि उच्च स्तर पर धांधली की पुष्टि होने के पहले
अन्य अनेक गड़बडि़यां भी सामने आ चुकी थीं और इसके चलते यह मामला न केवल
उच्च न्यायालय पहुंचा, बल्कि परीक्षा परिणाम को कई बार संशोधित भी करना
पड़ा। निश्चित रूप से यह एक बड़ी परीक्षा थी और इस कारण इसका आयोजन किसी
चुनौती से कम नहीं था, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उसे मनमाने तरीके से
आयोजित किया जाए। यह आश्चर्यजनक है कि जिन पर परीक्षा की शुचिता को बनाए
रखने की जिम्मेदारी थी उन्होंने ही धांधली की। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन में हुए घोटाले के बाद यह एक और ऐसा घोटाला हैजिस
पर राज्य सरकार के लिए कोई सफाई देना मुश्किल है। टीईटी में हुई धांधली के
लिए राज्य सरकार माध्यमिक शिक्षा परिषद के निदेशक को निलंबित कर ही अपनी
जिम्मेदारी से मुक्त नहींहो सकती। उसे यह भी बताना होगा कि जिसपरीक्षा में
इतने बड़े पैमाने पर धांधली हुई और तमाम शिकायतें सामने आई उसे रोकने के
लिए उसने अपने स्तर पर कोई प्रयास क्यों नहीं किए?
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