उत्तर
प्रदेश के सारे सेवायोजन कार्यालयों (एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज) में गहगहमी
बढ़ गई है. पंजीकरण कराने वाले बेरोजगार युवकों की भीड़ इस कदर होती है कि
कभी-कभी पुलिस को लाठी भी भांजनी पड़ती है. जिन्हें पता नहीं वे जान लें कि
ये बेरोजगार भूखे-प्यासे यूं ही नहीं खड़े हैं बल्कि वे समाजवादी पार्टी
के घोषणापत्र में किए गए वादे से उम्मीद लगाए बैठे हैं. समाजवादी पार्टी
(सपा) ने बेरोजगारों को हर साल 12,000 रु. बेरोजगारी भत्ता देने का वादा
किया है.
आर्थिक
सुधारों के बाद निजी क्षेत्र में अवसर बढ़ने और सरकारी नौकरियों में खास
भर्ती न होने की वजह से इन कार्यालयों की गतिविधियां काफी कम हो गई थीं और
उसके कर्मचारी मानो बेरोजगार हो गए थे. एक दिन में कुछ ही पंजीकरण होते थे
लेकिन आज हालत यह है कि अब गिनती हजार का आंकड़ा पार कर रही है. राजनैतिक
पार्टियों के वादों की वजह से सेवायोजन कार्यालयों के अधिकारियों और
कर्मचारियों को रोजगार मिल गया है.
इस
बार का विधानसभा चुनाव प्रदेश के बीते चुनावों की तुलना में अलग इस लिहाज
से भी था कि इसमें पहली बार डेढ़ करोड़ नए और कुल 4 करोड़ युवा मतदाताओं ने
हिस्सा लिया. ऐसे में सभी राजनैतिक पार्टियों के लिए इन युवाओं को अपनी ओर
खींचना लाजमी था. इसी के चलते सपा ने सबसे पहले अपने घोषणापत्र में
बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने की बात कही. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में
बेरोजगार युवाओं को 12,000 रु. सालाना बेरोजगारी भत्ता देने की बात कही.
फिर क्या था. नतीजों की प्रतीक्षा किए बगैर प्रदेश के युवा दौड़ लिए
सेवायोजन कार्यालयों की ओर. समाजवादी पार्टी को बहुमत मिलने के बाद
बेरोजगार युवाओं की उम्मीदों को मानो पंख लग गए हैं.
असल
में 2006 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने 25 साल से 35 साल के
युवाओं को 500 रु. प्रति माह बेरोजगारी भत्ता देने की योजना शुरू की थी.
इसने युवाओं को खासा आकर्षित किया था और वर्ष 2007 के शुरुआती महीनों में
प्रदेश के सभी सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकृत युवाओं की संख्या 34 लाख तक
पहुंच गई थी. यह योजना पूरी तरह से परवान चढ़ पाती कि इसी दौरान विधानसभा
चुनाव की घोषणा हो गई और इसके बाद बनी बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार
ने बेरोजगारी भत्ता बंद कर दिया. इसका असर प्रदेश के सेवायोजन कार्यालयों
में होने वाले पंजीकरण पर भी पड़ा. बेरोजगारों ने अपने पंजीकरण का नवीकरण
कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ली और वर्ष 2010 में प्रदेश में कुल पंजीकृत
बेरोजगारों की संख्या 19 लाख तक गिर गई थी.
इस
बार के चुनाव में जिस प्रकार से सपा ने बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया
है उसने एक बार फिर सेवायोजन कार्यालयों में भीड़ बढ़ा दी है. अकसर
बेरोजगार युवक-युवतियां नौकरी की तलाश में आते थे लेकिन सालों इंतजार के
बाद इन्हें निराशा ही हाथ लगती थी. लेकिन इस बार बेरोजगार युवा भत्ते की आस
में भी सेवायोजन कार्यालयों का रुख करने लगे हैं. लखनऊ के लालबाग स्थित
सेवायोजन कार्यालय में वर्ष 2011 के दौरान औसतन 40 से 50 बेरोजगार युवा
प्रतिदिन पंजीकरण करवाने पहुंचे. जनवरी, 2011 से दिसंबर, 2011 तक कुल
पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 18,163 थी. वहीं इस वर्ष के शुरुआती दो
महीनों में पंजीकरण का आंकड़ा 20,000 को पार कर चुका है.
लखनऊ
के क्षेत्रीय सेवायोजन अधिकारी डी.के. पुंडीर कहते हैं, ‘जनवरी के तीसरे
हफ्ते से बेरोजगारों के पंजीकरण में अचानक 15 से 20 गुना इजाफा हुआ. पहले
जहां पंजीकरण के लिए दो काउंटरों से काम चल रहा था, वहीं अब इनकी संख्या
बढ़ाकर 10 कर दी गई है.’ पुंडीर बताते हैं कि बेरोजगारों को पंजीकरण फॉर्म
मुफ्त में दिया जा रहा है. यह फॉर्म एक लिफाफे के आकार का है. लिफाफे पर
दिए गए बिंदुओं के अनुसार बेरोजगार अपनी जानकारियां भरते हैं और फिर लिफाफे
में अपने शैक्षिक प्रमाणपत्रों की प्रमाणित प्रति रखकर जमा कर देते हैं.
इन प्रमाणपत्रों के हिसाब से बेरोजगारों को उनकी योग्यता के हिसाब से
वर्गीकृत कर लिया जाता है और इसके अनुसार इन्हें उपलब्ध नौकरी की जानकारी
मुहैया करा दी जाती है. चुनाव के बाद यदि सरकार बेरोजगारों की जानकारी
मांगेगी, तो वह भी मुहैया करा दी जाएगी.
सेवायोजन
कार्यालय में आने वाले बेरोजगार ज्यादातर बेरोजगारी भत्ता पाने की आस में
पंजीकरण करा रहे हैं. लखनऊ के महानगर इलाके में रहने वाली और बीएड छात्रा
ज्योति कहती हैं, ‘यदि रोजगार के अवसर की जानकारी मिलने के साथ यदि भत्ता
भी मिल जाए तो यह बोनस ही है.’ राजधानी के राजाजीपुरम के रहने वाले सुबोध
सिन्हा ने हिंदी से स्नातकोत्तर की डिग्री ली लेकिन बीते आठ वर्षों से
नौकरी की आस में भटक रहे हैं. छह साल पहले इन्होंने सेवायोजना कार्यालय में
पंजीकरण कराया था और मुलायम सरकार के कार्यकाल में भत्ता भी लिया था लेकिन
मायावती सरकार के आते ही बेरोजगारी भत्ता मिलना बंद हो गया और इसके बाद
सुबोध ने भी अपना पंजीकरण नवीकरण कराने में कोई दिलचस्पी नहीं ली. नतीजाः
तीन साल बाद इनका पंजीकरण निरस्त हो गया और उन्हें दोबारा नाम दर्ज कराना
पड़ा है.
गोरखपुर
के क्षेत्रीय सेवायोजन कार्यालय के कर्मचारी बीते एक महीने से बेरोजगारों
की भारी भीड़ देखकर चकित हैं. यहां के क्षेत्रीय सेवायोजन अधिकारी शशिभूषण
सिंह बताते हैं कि बीते वर्ष सितंबर में यहां पर भीड़ बढ़ी थी जब अध्यापक
पात्रता परीक्षा के लिए यहां पर करीब 8,000 अभ्यार्थियों ने दौड़ लगाई थी.
लेकिन इस बार फरवरी में ही 1,25,000 से अधिक पंजीकरण हो चुके हैं. आजमगढ़,
मऊ और बलिया जिले में भी सेवायोजन कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों
के पास सांस लेने की फुरसत नहीं है. यहां पर हर रोज 300-500 बेरोजगार
पंजीकरण के लिए पहुंच रहे हैं.
बेरोजगारों
को पंजीकरण फॉर्म के लिए मारामारी करते देख कुछ लोगों ने इसमें भी अपने
लिए रोजगार ढूंढ़ लिया है. बहराइच सेवायोजन कार्यालय के बाहर लगी दुकानों
में 20 से 25 रु. में हूबहू छपा रोजगार फॉर्म बिकने लगा है. इस कालाबाजारी
को रोकने के लिए सेवायोजन अधिकारी लालमणि चौबे ने अधिकारियों के हस्ताक्षर
वाला पंजीकरण फॉर्म ही स्वीकार करने के निर्देश दिए हैं.
समायोजन
कार्यालयों पर ज्यादातर बीसेक साल के नौजवानों की भीड़ है. लेकिन सपा के
घोषणापत्र में साफ कहा गया हैः ‘...35 वर्ष की उम्र पूरा कर चुके किंतु
बेरोजगार नौजवानों के लिए बेरोजगारी भत्ते की व्यवस्था होगी जो 12,000 रु.
सालाना होगी.’ ऐसे में पार्टी ने पहले से ही अपने बचाव का रास्ता तैयार कर
रखा है.
खैर,
सेवायोजन कार्यालयों में जिस तरह से भारी भीड़ जमा हो रही है उससे पंजीकृत
बेरोजगारों की संख्या, जो वर्ष 2007 में 34 लाख थी, बढ़कर डेढ़ करोड़ तक
पहुंच सकती है. ऐसे में 12,000 रु. सालाना बेरोजगारी भत्ता देने पर सरकार
को 18,000 करोड़ रु. हर साल खर्च करने पड़ेंगे. लखनऊ के कान्यकुब्ज कॉलेज
में समाजशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफसर डॉ. विनोद चंद्रा बताते हैं कि
बेरोजगारी भत्ते से युवा की किसी प्रकार की मदद नहीं हो सकती. इस मद में
सरकार जितना पैसा खर्च करेगी उससे प्रदेश के सभी विश्वविद्यालायों,
महाविद्यालयों को उच्चीकृत किया जा सकता है. वे कहते हैं, ‘पार्टियों को
रोजगार सृजन और शिक्षा की गुणवत्ता की दिशा में काम करना चाहिए. भत्ता
बांटकर युवाओं को बिना मेहनत के पैसे देकर उनके भविष्य से खिलवाड़ करने
सरीखा है.’
सपा
के वरिष्ठ नेता और प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी उनसे सहमत नहीं हैं. वे
कहते हैं, ‘सपा बेरोजगारों को रोजगार देने की पक्षधर है और जब तक यह नहीं
मिल पाता तब तक उन्हें बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा ताकि उनके खर्चों में
कुछ मदद की जा सके.’ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी बेरोजगारी
भत्ता सरीखे वादों को चुनावी लटके-झटके की संज्ञा देते हुए कहते हैं कि
राज्य के पास इतने स्त्रोत ही नहीं हैं कि वह सभी बेरोजगारों को भत्ता दे
सके. तिवारी कहते हैं, ‘बेरोजगारों को भत्ता देने की बजाए उन्हें रोजगार के
लायक बनाना ज्यादा जरूरी है.’
बेरोजगारी
भत्ते के औचित्य पर अर्थशास्त्रियों और नेताओं में मतभेद हो सकता है, पर
सपा की उम्मीद की साइकिल ने बेरोजगार युवाओं की भी उम्मीद बढ़ा दी है. अब
बारी नेताओं की है कि वे इसे न केवल पूरा करें बल्कि बरकरार रखें. वे यह भी
समझें कि युवा की असली जरूरत रोजगार है न कि छटांक भर भत्ता. सरकार बेहतर
राजस्व वसूली से भत्ते का इंतजाम कर सकती है लेकिन अंततः उसे इसके लिए
उद्योग-धंधे तथा सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा जिससे रोजगार के अवसर
बढ़ेंगे और राजस्व भी बढ़ जाएगा.
सपा सरकार के वादे-इरादे
-
सभी सरकारी सेवाओं में भर्ती की उम्र 35 वर्ष होगी और 35 वर्ष की उम्र
पूरा कर चुके लेकिन बेरोजगार नौजवानों को सालाना 12,000 रु. बेरोजगारी
भत्ता मिलेगा.
-
प्राथमिक स्तर पर सभी बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था. कक्षा 8
तक सभी पुस्तकें मुफ्त और कन्याओं को वर्ष में दो बार वस्त्र मुफ्त वितरित
होंगे. सभी सरकारी एवं अनुदानित निजी महाविद्यालयों में स्नातक स्तर तक
लड़कियों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी.
- इंटर तक बिना सरकारी अनुदान के पढ़ाने वाले अध्यापकों के लिए जीवकोपार्जन भर के मासिक मानदेय की व्यवस्था होगी.
- निजी उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा में 5 लाख रु. वार्षिक आय से कम वाले परिवारों के बच्चों की फीस माफ होगी.
- 12वीं पास सभी विद्यार्थियों को एक लैपटॉप मिलेगा और कक्षा दस पास विद्यार्थियों को टैबलेट उपलब्ध कराया जाएगा.
-
जमीन गिरवी रखकर कर्ज लेने वाले किसानों को कर्ज न दे पाने की स्थिति में
जमीन नीलाम करने की व्यवस्था समाप्त कर दी जाएगा. ऐसी स्थिति में कर्ज माफ
होगा.
- छोटी जोत वाले 65 साल के किसानों को पेंशन दी जाएगी.
- प्राकृतिक आपदाओं से फसल खराब होने की स्थिति से निबटने के लिए फसल बीमा योजना शुरू होगी जिसकी आधी किस्त सरकार देगी.
- ग्रामीण क्षेत्रों को 20 घंटे और शहरी इलाकों को 22 घंटे बिजली मिलेगी.
- चिकित्सा शिक्षा में कन्याओं और अल्पसंख्यक बच्चों के प्रवेश के लिए भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था होगी.
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मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए सच्चर कमेटी की सिफारिशों के तहत सभी
मुसलमानों को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से अत्यधिक पिछड़ा मानते
हुए दलितों की तरह जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण दिया जाएगा.
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हाइस्कूल तक शिक्षा ग्रहण कर चुकी लड़कियों के लिए कन्या धन देने की
पुरानी योजना फिर से लागू होगी और अच्छे अंक पाने वाली कन्या को साइकिल दी
जाएगी.
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