-तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा मंत्री ने जतायी थी असहमति
-नियमों की भी की गई अनदेखी
लखनऊ : सवालों के घेरे में आयी अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी)
के आयोजन का प्रस्ताव शासन कोपहले राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
परिषद (एससीईआरटी) ने भेजाथा लेकिन यूपी बोर्ड को यह जिम्मेदारी सौंपने में
शासन के आला अधिकारियों ने भी आतुरता दिखायी। न सिर्फ तत्कालीन माध्यमिक
शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र ने यूपी बोर्ड को टीईटी के आयोजन की बागडोर
थमाने के प्रस्ताव पर असहमति जतायी थी बल्कि बोर्ड को यह जिम्मेदारी
सौंपनेमें नियमों की भी अनदेखी की गई।
टीईटी के प्रारूप के बारे में
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने 11 फरवरी 2011 को राज्यों को
दिशानिर्देश जारी किया था। यह दिशानिर्देश जारी होने के तकरीबन तीन महीने
बाद तक यही माना जा रहा था कि उप्र में टीईटी का आयोजन बेसिक शिक्षा विभाग
के अधीन एससीईआरटी ही करायेगा। एनसीटीई के दिशानिर्देशों पर अमल करते हुए
एससीईआरटी ने मई 2011 के पहले सप्ताह में उप्र अध्यापक पात्रता परीक्षा का
प्रारूप तैयार कर उसके आयोजन का प्रस्ताव शासन को मंजूरी केलिए भेज भी
दिया। विगत 12 मई को बेसिक शिक्षा मंत्री धर्म सिंह सैनी की अध्यक्षता में
हुई विभाग की मासिकसमीक्षा बैठक में मंत्री और सचिव ने विभागीय अफसरों को
बताया कि टीईटी केआयोजन की जिम्मेदारी यूपी बोर्ड को सौंपी जाएगी। तर्क यह
दिया गया कि एससीईआरटी के पास टीईटी के आयोजन के लिए न तो पर्याप्त संसाधन
हैं और न हीविशेषज्ञता।
चूंकि यूपी बोर्ड माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधीन
हैं, इसलिए मई में ही सचिव बेसिक शिक्षा अनिल संत ने सचिव माध्यमिक शिक्षा
जितेंद्र कुमार को पत्र लिखकर टीईटी के आयोजन की जिम्मेदारी यूपी बोर्ड को
सौंपे जानेके बारे में सहमति मांगी थी। अगस्त में तत्कालीन माध्यमिक
शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र ने यूपी बोर्ड को टीईटी के आयोजन का दायित्व
सौंपे जाने के प्रस्ताव से असहमति जताते हुए संबंधित पत्रावली बेसिक शिक्षा
विभाग को वापस भेज दी थी। माध्यमिक शिक्षा मंत्री का तर्क था कि दिसंबर से
यूपी बोर्ड की प्रायोगिक और मार्चसे मुख्य परीक्षाएं शुरू हो जाती हैं। इन
परीक्षाओं में 50 लाख से अधिक परीक्षार्थी बैठेंगे। परीक्षा की तैयारी में
काफी समय लगता है, इसलिए यूपी बोर्ड के लिए टीईटी का आयोजन करा पाना संभव
नहीं है। इस पर शासन के रसूखदार अफसरों ने सितंबर केपहले हफ्ते में टीईटी
के आयोजन की जिम्मेदारी यूपी बोर्ड को सौंपने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री से
अनुमोदित करा लिया। सात सितंबर को इस संबंध में शासनादेश भी जारी हो गया।
गौरतलब
यह भी है कि जब बेसिक शिक्षा विभाग ने टीईटी के आयोजन की जिम्मेदारी यूपी
बोर्ड को सौंपे जानेके बारे में माध्यमिक शिक्षा महकमे से सहमति मांगी थी
तो उस पर शासन ने यूपी बोर्ड से अभिमत मांगा था। इस पर बोर्ड के सभापति और
माध्यमिक शिक्षा निदेशक संजय मोहन ने शासन को पत्र लिखकर बताया था कि यदि
शासन यूपी बोर्ड को टीईटी के आयोजन की जिम्मेदारी सौंपना चाहता है तो वह
इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 कीधारा-9(4) के तहत बोर्ड को यह निर्देश
दे सकता है। हालांकि जानकारों का कहना है कि यूपी बोर्ड का कार्यक्षेत्र और
उसके अधिकार इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 कीधारा-7 द्वारा निर्धारित
किये गए हैं। धारा-7 में स्पष्ट कहा गया है कि बोर्ड को प्रदेश में सिर्फ
हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं आयोजित कराने, उनमें परीक्षार्थियों को
प्रवेश देने, परीक्षाओं के प्रयोजन से संस्थाओं को मान्यता देने,
पाठ्यक्रम व पाठ्यपुस्तकें संस्तुत करने का ही अधिकार है। धारा-9(4) के तहत
शासन को बोर्ड को तत्काल आदेश देने या कार्यवाही करने का अधिकार तो है
लेकिन ऐसे आदेश अधिनियम के प्रावधानों से असंगत नहींहोने चाहिए। उनका कहना
है कि बोर्ड को यह जिम्मेदारी सौंपने के लिए अधिनियम में संशोधन करना चाहिए
था जोकि नहीं हुआ।
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